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राजस्थान बीज यात्रा: सरसों सत्याग्रह-2015
(दिनांकः 31 अक्टूबर, 2015 से 3 अक्टूबर, 2015)
    सैकड़ों किसान जुडे सरसों सत्याग्रह से।
    जैविक खेती के प्रसार के लिए मुहिम तेज करने की आवश्यकता।
    सूखते जा रहे हैं मीठे पानी के नलकूप।
    राज्य में जंगल और चारागाहों पर बढ़ रहा है खतरा।
    जहर बेच रही कम्पनियां तेज कर रही हैं अपनी गतिविधियां।
यात्रा विवरण
मुख्य प्रचारक/वक्ता: श्री राकेश सिंह, डा. एम.पी. सिंह.।
यात्रा संचालनः दिनेश चंद्र सेमवाल
प्रथम दिवस (31 अक्टूबर, 2015)।
यात्रा प्रारम्भ स्थल: डिग्गी, जिला, मालपुरा, जनपद, टोंक।
बैठक का आयोजन:
1. गांव, सरवर, तहसील, अराई, जिला अजमेंर।
2. गांव, देवल, तहसील, मालपुरा, जिला, टोंक।
सम्पर्क मार्ग में पड़ने वाले गांव: डिग्गी, मालपुरा, लाम्बा हरिसिंह, डुसूक।
गांवों की स्थिति:
1. सरवर:
ऽ    अधिकरतर किसान जैविक खेती कर रहे हैं।
ऽ    लगभग सभी किसान पशु पालक हैं।
ऽ    पूरे गांव में एक-दो किसान ही बी.टी. कपास की खेती कर रहे हैं।
ऽ    पूछे जाने पर ये किसान रासायनिक खाद, कीटनाशक तथा बीजों पर लगने वाले खर्च का आंकलन के बारे नहीं बता पाये।
ऽ    गांव के आस-पास अभ्रक और पत्थरों की खुदाई होने से यहां चारागाह तेजी से समाप्त हो रहे हैं। जिससे पशुओं के लिए चारे का संकट बढ़ता जा रहा है।
2. देवल गांव:
ऽ    ग्रामीणों ने बताया कि 15 जूलाई से बारिश न होने के कारण जहां चारा सूख रहे हैं और चारे का संकट गहराता जा रहा है वहीं, वहीं किसान गेहूं, जौ, चना, सरसों की बुवाई समय पर नहीं हो पा रही है और किसान वर्षा होने के इंतेजार में चिंतित बैठा है।
ऽ    कम ही किसानों के पास सिंचाई के साधन हैं और 5 प्रतिशत से भी कम किसान सरसों की बुवाई कर पाये हैं।
ऽ    सिंचाई कर रहे किसानों को मीलों दूर से खेत तक पानी ले जाने में डीजल पर अत्यधिक खर्च करना पड़ रहा है।
ऽ    सिंचाई के पानी के साथ ही पीने के पानी का भी बड़ा अभाव है।
ऽ    गांव में पशु विभिन्न तरह की बीमारियों से संक्रमित हो रहे हैं।
ऽ    ज्ञात हुआ कि यहां कैंसर और मधुमेह से कई किसान पीडि़त हैं।
ऽ    स्वास्थ्य तथा पर्यावरण के प्रति सजग किसान आये दिन सब्जियों और अन्य खाद्य पदार्थों में जहरीले रसायनों के मिलावट को इन बीमारियों का कारण मानते हैं।
ऽ    क्षेत्र में जंगलों की तीव्रता से कटाई को लेकर ग्रामीण तापमान में होने वाली सम्भावित वृद्धि को लेकर चिंतित दिखे।
ऽ    फसलों में कीटों की बढ़ती समस्या की बात सामने आई।
ऽ    बताया गया कि रासायनिक उर्वरक, कीट नाशकों को बेचने वाले कई कम्पनी के लोग घर-घर जाकर अपने उत्पादों का प्रचार कर रहे हैं, जिससे देवल गांव के खेतों पर रसायनों का सम्भावित कब्जा होने से नकारा नहीं जा सकता।
ऽ    रासायनिक खाद और कीटनाशकों को प्रयोग करने वाले किसान इन रसायनों से होने वाली हानियों के बारे में नहीं बता पाये।

द्वितीय दिवस (1 नवम्बर, 2015)
यात्रा प्रारम्भ स्थल: डिग्गी, जिला, मालपुरा, जनपद, टोंक।
बैठक आयोजन स्थल एवं उनका क्रम:
3. देशमा, तहसील, मालपुरा,  जिला टोंक।
4. किरावल, तहसील, मालपुरा, जिला, टोंक।
5. कुडली, तहसील, फागी, जिला, जयपुर।
6. चैनपुरा, तहसील मालपुरा, जिला, टोंक।
गांवों की स्थिति:
(3) देशमा:
ऽ    देशमा नवधान्य की अवधारणा को साकार करता हुआ गांव दृष्टिगोचर हो रहा है।
ऽ    यहां अधिकतर किसान जैविक खेती को अपना रहे हैं तथा बीज संरक्षण के लिए तत्पर हैं।
ऽ    यहां स्थित नवधान्य बीज बैंक आस-पास के किसानों के लिए बीज संरक्षण और परम्परागत बीजों को बढ़ावा देने की प्ररेणा दे रहा है।
ऽ    सूखे की स्थिति के बावजूद भी गांव में नीम के सैकड़ों नए पौधे खूब लहलहा रहे हैं। बताया गया कि जैविक खाद में नमी तथा जीवांश को संग्रहण करने की खूब क्षमता होती है, इस वजह से नन्हें पौधे सूखे की स्थिति में भी विजयी रहे हैं।
ऽ    किशन लाल नामक किसान जोकि पेशे से एक शिक्षक भी हैं गांव में नवधान्य के जैविक खेती तथा जैव-विविधता का संरक्षण की अलख जगा रहे हैं।
(4) किरावल:
ऽ    अन्य गावों की तरह यहां भी किसान सूखे की मार झेल रहे हैं।
ऽ    लगभग 1200 व्यक्तियों के इस गांव में एक ही ऐसा नलकूप है, जोकि मीठा पानी दे रहा है। अन्य नलकूप या तो खारा पानी दे रहे हैं अथवा सूख गये हैं।
ऽ    लगातार दो-सप्ताह तक मण्डी बंद रहने के कारण किसान अपने उत्पाद यथा मूंग, उड़द, तिल तथा मूंगफली को बेचने के लिए चिंतित नजर आये।
ऽ    नवधान्य द्वारा इस गांव मंे समय-समय पर जैविक खेती और बीज-संरक्षण के लिए प्रशिक्षण आयोजित किये जाते रहे हैं।
ऽ    यहां अधिकतर जैविक किसान हैं
ऽ    कई किसान अभी भी परम्परागत बीज को बुवाई में प्रयोग करते आ रहे हैं। उनका कहना है कि इन्हीें बीजों की वजह से उनका जीवन संयत चल रहा है।
ऽ    द्वितीय व्यवसाय पशु-पालन है।
ऽ    सभी गांवों में एक बात सामान्य थी वह थी गांव के बीच में तालाब होना।
ऽ    ये तालाब परम्परागत रूप से जल-संरक्षण के सफल एवं जीवंत प्रतीक हैं। ग्रामीणों ने बताया कि धीरे-धीरे इन तालाबों की देख-रेख में नई पीढ़ी की रूचि घटती जा रही है।
(5) कुडली:
ऽ    गांव में गुजरों की जनसंख्या अधिक है।
ऽ    कृषि के साथ पशु-पालन द्वितीय व्यवसाय।
ऽ    मूली, राई, धनिया व मिर्च की खेती भी किसान यहां कर रहे हैं।
ऽ    गांव में पूर्णतः जैविक खेती की जा रही है, तथापि रासायनिक खाद और तथाकथित उन्नत बीजों को बेचने वाली कम्पनियों के प्रतिनिधि द्वार-द्वार जाकर इन उत्पादों का प्रचार कर किसानों को रासायनिक खेती के लिए ललचा रहे हैं, ऐसा किया जाना खेती-किसानी के लिए प्रत्यक्ष खतारा है।
ऽ    बुजुर्ग किसान रतन और रिद्ध करण समय-समय पर ग्रामीणों को जैविक खेती के बारे में मार्गदर्शन करते हैं।
ऽ    अधिकतर किसान नवधान्य से भली तरह से परिचित हैं।
ऽ    मुख्य फसलें- ज्वार, बाजरा, उर्द, मूंग, मसूर, सरसों, तिल, मूंगफली आदि।
ऽ    महिला साक्षरता स्तर अति निम्न है।

(6) चैनपुरा:
ऽ    ’गांव के अधिकतर किसान बुवाई के लिए अपने ही बीजों का प्रयोग करते हैं। वे जैविक खाद और जैविक कीट नाशकों का प्रयोग करते हैं।’- गांव के एक योगेंद्र प्रसाद शर्मा ने जानकारी दी।
ऽ    गंाव-भर में एक-दो किसान ही बी.टी. कपास की खेती करते हैं। उन्होंने बताया कि उन्हें इन बीजों से उत्पादन अधिक मिलता है, लेकिन पूछे इस खेती पर रसायनों तथा कीटनाशकों पर लगने वाले खर्चे तथा उत्पादन की कीमत का सहीं आंकलन नहीं लगा सके।
ऽ    चर्चा के दौरान बी.टी. कपास उत्पादक किसान बड़ी बीज कम्पनियों द्वारा ठगे जाने की बात पर सहमत हुए और जैविक खेती और परम्परागत बीजों को बढ़ाने के लिए तैयार हो सके।
ऽ    राम शर्मा, सेवानिवृत शिक्षक हैं। उन्हें बीज निर्माण और जैविक खेती के लिए सभी युक्तियों की जानकारी है। वे समय-समय पर ग्रामीणों को अपने अनुभवों से साझा करते रहते हैं।
तृतीय दिवस (3 नवम्बर, 2015)
यात्रा प्रारम्भ स्थलः डिग्गी, तहसील. मालपुरा, जिला. टोंक।
बैठक आयोजन स्थल एवं उनका क्रम:
7. छान/महुआ, तहसील, टोंक, जिला, टोंक।
8. मेहंद गांव/ मालियों की झोपड़़ी, तहसील, टोंक, जिला, टोंक।
गांवों की स्थिति:
(7) छान/महुआ:
ऽ    यहां किसान बुवाई के लिए बाजार से ही बीज खरीदते हैं। बहुत ही कम किसान अपने बीजों को बुवाई हेतु प्रयोग में लाते हैं।
ऽ    बुवाई के लिए बीज चयन की विधि यहां के किसान भूल चुके हैं। इन ग्रामीणों का मानना है कि बाजार से मिलने वाले बीज ही बम्पर पैदावार दे सकते हैं।
ऽ    क्षेत्र के गांवों में बड़ी मात्रा में रासायनिक खेती हो रही है। इन जहरीले रसायनों से होने वाली हानियों के बारे में वे अनविज्ञ हैं।
ऽ    गांव में जैविक खेती तथा परम्परागत बीज संरक्षण के लिए नवधान्य की मुहिम के बारे में बताये जाने पर जैविक खेती की दिशा में कार्य करने के लिए सहमति जताई और जी.एम. सरसों का विरोध करने का संकल्प लिया।
(8) मेहंद गांव/ मालियों की झोपड़़ी
ऽ    यह जागरूक युवाओं का गांव प्रतीत हुआ।
ऽ    ग्रामीणों ने जी.एम. सरसों के विरोध के लिए नवधान्य के साथ अपना संकल्प दोहराया।
ऽ    रासायनिक पद्धति पर होने वाली खेती और उससे हाने वाली हानियों के बारे में यहां के किसानों को अच्छा ज्ञान है।
ऽ    खरीफ तथा रबी की दलहनी तिलहनी के साथ ही गांव में सब्जियों को भी खूब उगाया जाता है। यहां कुछ किसान फूलों की खेती भी कर रहे हैं।
ऽ    गांव में जल-प्रदूषण के कारण कई बीमारियों की बात भी सामने आई।
ऽ    गांव के अधिकतर किसान साक्षर हैं।
राज्य में खेती के बाद पशुपालन आय का द्वितीय मुख्य स्रोत है। यहां अधिकत्तर किसान जैविक खेती कर रहे हैं, लेकिन कुछ किसान खेती में रासायनिक खादों, कीटनाशकों और बी.टी/जी.एम बीजों का प्रयोग भी कर रहे हैं। राज्य में सूखे की स्थिति से खेत सूने पडे़ हुए हैं, और किसान बुवाई की सभी तैयारियों के साथ बारिश का इंतजार कर रहे हैं। जिन गांवों से बीज यात्रा आगे बढ़ी, वहां सिंचित भूमि नगण्य दिखी। यात्रा के दौरान पाया गया कि गांवों के आस-पास अभ्रक और पत्थरों की खुदाई से जंगल और चारागाह तेजी के साथ समाप्त हो रहे हैं, जिससे पशुओं के चारे पर संकट के बादल मंडराने लगा है। साथ ही इस मरूभूमि का तापमान और भी बढ़ने की संभावना से किसान भयभीत हो रहे हैं। विभिन्न गांवों में हुई चर्चाओं के दौरान मिलती-जुलती दो बाते सामने आईं-
1.    यह कि जो किसान बी.टी. फसलों को बो रहे हैं या तथाकथित उन्नत-बीजों का प्रयोग कर रासायनिक खेती को बढ़ावा रहे हैं उन्हें इन बीजों और जहर का जन-साधारण के स्वास्थ्य तथा अपनी माली हालात पर पड़ने वाले विपरीत प्रभाव के बारे में थोड़ा भी भान नहीं हैं। ऐसे किसान इन आदानों पर लगने वाले खर्च एवं प्राप्त उत्पादन का आंकलन भी नहीं कर पाते हैं। यहां किसानों पर आमदनी अट्ठनी और खर्चा रूपया वाली बात सटीक बैठती है।
2.    यह कि बड़ी बीज कम्पनियों के जन-सम्पर्क कार्यकर्ता बीज तथा रासायनिक खाद व रासायनिक कीट-नाशकों का प्रचार घर-घर जा कर कर रहे हैं और भोले-भाले किसान उनके चंगुल में फंसते जा रहे हैं।
नोट- राज्य में समय रहते बड़ी बीज कम्पनियों के षणयंत्र पर नियंत्रण नहीं किया गया तो यह स्थिति हमारी खेती और उसकी जैव- विविधता के साथ ही उपभोगताओं के स्वास्थ्य एवं किसान की आर्थिकी पर घोर संकट ढ़ाने वाली सिद्ध होगी।


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