जैवविविधता और जैविक कृषि द्वारा: जहरमुक्त खेती एवं विषमुक्त भोजन
एक शताब्दी से जहरीला गिरोह पृथ्वी पर जीवन के विरूद्ध, विभिन्न प्रजातियों के विरूद्ध, भूमि, किसान और समाज के विरूद्ध, हमारे शरीर और स्वास्थ्य के विरूद्ध, जलवायु प्रणाली के विरूद्ध, ज्ञान-विज्ञान और वैज्ञानिकों के साथ ही लोकतंत्र एवं स्वतंत्रता के विरूद्ध कार्य कर रहा है। यह सब देखकर ऐसा लगता है कि इस विषैली राह पर चलकर हम धरती पर मानव जीवन की अंतिम सदी में जी रहे हैं।
अब यह जहरीला गिरोह हमें भोजन की आपूर्ति करने वाले आधारभूत वनस्पतियों और पशुओं को छठवें विलुप्तीकरण की आग में झोंकने जा रहा है। मधुमक्खी से लेकर पक्षियों तक, मिट्टी में निहित सूक्ष्म जीवों और हमारे भोजन के लिए महत्वपूर्ण वनस्पतियों से लेकर जंगलों (अमेजन के वन) तक का नाश करने वाली उद्योग आधारित जहरीली खेती अब तक की सबसे विनाशकारी कारक सिद्ध हो रही है। औद्योगिक खेती ने हमारे द्वारा उगाई और खाई जाने वाली फसलों की विविधता को समाप्त कर दिया है। जीएमओ ने हमारी फसलों को परागित करने वाली मधुमक्खी के जीवन को भी संकट में डाल दिया है। जीएमओ फसलों के उत्पादन के लिए प्रयुक्त कीटनाशकों ने 90 प्रतिशत मोनार्क तितलियों को सफाया कर दिया है। जलवायु परिवर्तन में हरित-गृह (ग्रीनहाउस) गैसों का बहुत बड़ा योगदान है, जीवाश्म ईंधन आधारित खेती इन गैसों में 50 प्रतिशत वृद्धि करने के लिए जिम्मेदार है।
मानव जीवन के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण स्थान रखने के बावजूद, कृषि की जैवविविधता बहुत तेजी से घट रही है। हमें आज ऐसे विकास की आवश्यकता है, जिससे जैव विविधता में अनुकूलन की क्षमता बनी रहे। आज जो विविधता हमारे इर्द-गिर्द है, उसे हजारों पीढ़ियों से विकसित किया गया है। हमारा कर्तव्य है कि हम अपनी आने वाली पीढ़ियों और उनके भविष्य के लिए इस विविधता को सुरक्षित बनाए रखें। जहरीले रसायनों के साथ खेती का मतलब छोटे किसानों को कर्ज की गर्त में धकेलकर उनसे खेती छुड़वा देना है। ऐसी खेती से भारतीय किसानों में महामारी के स्तर पर मौत और आत्महत्यों की लाखों घटनाएं घट चुकी हैं।
जहरीली खेती ने अफ्रीका, सीरिया और अन्य गरीब देशों में किसानों को शरणार्थी बना दिया। जहरीले गिरोह के पास प्रौद्योगिकी और उत्पादों के नाम पर हिंसा, विनाश और मृत्यु के उपकरण के अलावा और कुछ भी नहीं है।
पारस्थितिकीय कृषि और शुद्ध जैविक खेती से केवल भोजन और पोषण का समाधान ही नहीं मिलता, बल्कि इनसे जलवायु संकट का समाधान भी मिलता है। ऐसी खेती वर्तमान में छटवें विलुप्ति के कगार पर खड़ी मानव सहित सभी जीव प्रजातियों की रक्षा करने में भी सहायक है।
गांधी जी की जयंती और अंतर्राष्ट्रीय अहिंसा दिवस के अवसर पर हम व्यक्तिगत रूप से और अपने समुदाय के साथ मिलकर संकल्प लेते हैं कि-
“हम जहर–मुक्त जैविक भोजन को उगाकर और खाकर अपने स्वास्थ्य के साथ ही अन्य प्रजातियों की रक्षा भी करेंगे।“
पोषण एक ऐसी मानवीय आवश्यकता है, जिसके आधार पर पृथ्वी पर जीवन की निरंतरता को बनाये रखा जा सकता है। मानव के अस्तित्व को बनाये रखने के लिए लालच और हिंसा के स्थान पर जीवन में सहकारिता और अहिंसा का होना परम आवश्यक है।
गांधी जी के अनुसार- ’’धरती हमारी हर जरूरत को पूरा कर सकती, लेकिन हमारे लालच को नहीं।’’
हम जहर–मुक्त जैविक क्षेत्रों को स्थापित करके एक ऐसे नेटवर्क का निर्माण करेंगे, जो मिट्टी, भूमि और पानी को फिर से जीवंत कर दे, जो जैव विविधता को फिर से नया जीवन दे सके, जो जलवायु में लचीलापन एवं स्थिरता लाये, जो हमारे स्वास्थ्य की रक्षा करे और हमारे नौ–निहालों के लिए कल्याणकारी हो तथा सभी जीव–प्रजातियों के भविष्य के लिए हितकर हो।
जहरमुक्त भोजन और खेती के माध्यम से हम अपने स्वर्णिम भविष्य तथा धरती पर स्थित सभी जीवों के लिए कल्याणकारी भविष्य के बीज बोयेंगे।
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