http://navdanya.org/news/533-2015-10-20-08-53-59

वंदना शिवा

जैव प्रौद्योगिकी संघ विज्ञान तथा प्रचार के मध्य अंतर स्पष्ट करने में सक्षम नहीं है। बी.टी. फसलों के बारे में प्रचारित बात कि ये अधिक उत्पादन देती हैं और कीटों का इन पर प्रभाव नहीं पड़ता, कोरा झूठ सिद्ध हो चुकी हंै। प्रचार के ठीक विपरीत ये फसलें कीटों को आकर्षित करने वाली, किसानों को कर्ज के संकट में घसीटने वाली और बदहाली की प्रतीक बन चुकी हैं। बी.टी. के नाम पर मोनसेंटो जैसी बड़ी कम्पनियां कीटनाशक और रासायनिक उर्वरकों के माध्यम से किसानों को लूटकर अपनी तिजोरियां भरने का कार्य कर रही हैं। अब समय आ गया है कि सरकार इस लूट के कुचक्र से देश को बचा ले……

विगत दिनों में पंजाब में सफेद मक्खी के कारण कपास की दो-तिहाई फसल बर्बाद हो गई। इस उपजाऊ क्षेत्र में इससे पूर्व सफेद मक्खी द्वारा ऐसा भयंकर प्रकोप देखने को न मिला। इस घटना से आहत होकर कपास उत्पादक 15 किसानों ने आत्महत्या कर दी। इस हृदय विदारक घटना ने यह बात सामने रख दी कि जी.एम.ओ फसलों का खेतों में परीक्षण से किसान कर्ज की विकराल स्थिति में सकते हैं और इससे किसानों को आत्महत्या के लिए फिर से विवश होना पडे़गा। अब तक इन बी.टी. फसलों के कारण तीन-लाख से अधिक किसान आत्महत्या कर चुके हैं, जोकि हमारे लिए भंयकर कृषि-आपदा है। इस कृषि संकट से देश को उबारने के लिए हमें अपनी खेती को जी.एम.ओ. के कुचक्र में धंसने से रोकना होगा, ताकि कर्ज और आत्महत्याओं की ऐसी गंभीर स्थिति से उभरा जा सके।
पंजाब में बी.टी. उत्पादक किसानों ने अपनी फसल पर 10-12 बार कीट नाशकों के उन्मूलन के लिए कीट नाशकों का छिड़काव किया। देखा जाए, तो प्रत्येक छिड़काव की कीमत 3200 रूपये बैठती है। बी.टी. कपास की बुवाई के लिए इन किसानों के द्वारा मोनसेंटो, माइको से महंगा बीज खरीदा गया। वहीं, महाराष्ट्र, हरियाणा, पंजाब में जिन किसानों ने गैर-बी.टी. कपास को उगाया, उनकी इस फसल पर कीटों का कोई भी प्रभाव देखने को नहीं मिला। पंजाब में तो जैविक किसानों की फसल को सफेद मक्खी ने छुआ भी नहीं।
उपरोक्त घटना पर वैज्ञानिक दृष्टिकोण यह सिद्ध करते हैं कि रासायनिक तथा बी.टी. फसलें कीटों को बढ़ावा देती हैं, जबकि जैविक खेती कीटों को नियंत्रित करती है। पारस्थितिक प्रक्रिया ही इस तरह की हो जाती है कि बी.टी. फसलों तथा भारी मात्रा में रसायनों के प्रयोग से कीटों की संख्या बढ़ जाती है। यदि प्राकृतिक विज्ञान पर आधारित पारस्थितिक खेती को अपनाया जाए, स्थायी कीट-नियंत्रण प्रौद्योगिकी को बढ़ावा दिया जाए तो बी.टी. जैसे महंगे तथा असफल बीज के साथ ही महंगे रसायनों से छुटकारा पाया जा सकता है।
जैव-प्रौद्योगिक समूह वैज्ञानिक तरीके से अपनी प्रतिक्रिया देने के बजाय मोंनसेंटों के झूठे वादों को दोहराते हैं, जिसके कारण हमारे लाखों किसान कर्ज के चंगुल में फंस चुके हैं और हजारों किसान आत्महत्या की ओर धकेले जा रहे हैं। बड़ा प्रश्न यह है कि क्या तीन लाख किसानों की आत्महत्या किसी भी देश की आंखें खोलने के प्रयाप्त नहीं होती?
कीटों को बढ़ावा देती औद्योगिक खेती-
औद्योगिक खेती एक ही तरह की फसल को बढ़ावा देती है। एकल पद्धति वाली खेती पर कीटों का प्रकोप अपेक्षाकृत अधिक होता है। ऐसी खेती में रासायनिक खादों के अंधाधुंध प्रयोग से कीट पौधों के प्रति अति संवेदनशील हो जाते हैं। कीटनाशकों के प्रकोप से कीटों की प्रतिरोधक क्षमता धीरे-धीेरे बढ़ जाती है और मित्र कीट समाप्त हो जाते हैं जिससे कृषि पारस्थितिकी पर बहुत बुरा असर पड़ता है।
1.    एकल कृषि को बढ़ावा देने से फसल पर होता है कीटों का अधिक प्रकोप।
2.    रासायनिक उर्वरक बनाते हैं कीटों को पौधों के प्रति अधिक संवेदनशील।
3.    कीटनाशकों के छिड़काव से बढ़ती है कीटों की प्रतिरोधक क्षमता।
4.    कीट नाशकों से हानिकारक कीटों को नियंत्रण करने वाले मित्र कीटों की प्रजातियां कम हो जाती है जिससे कृषि-पारस्थितिकी का संतुलन बिगड़ जाता है।
मोनसेंटो का कोरा झूठ
इन कीटों से बचाव के लिए बी.टी. फसल कतई विकल्प नहीं है। कीट नियंत्रण के लिए गैर-टिकाऊ रणनीति अपनाकर कीटों की संख्या नियंत्रित होने की बजाय नये कीटों का उद्भव होता है और फिर उन पर किसी भी प्रकार से नियंत्रण कर पाना बड़ा कठिन हो जाता है और अंततः वे सूपर कीट जैसे बन जाते हैं। मोनसेंटो हमेशा से प्रचार करता आ रहा है कि बी.टी. कपास के लिए कीटनाशकों के छिड़काव की आवश्यकता नहीं पड़ती। और इन बीजों को इसी बात को आधार मानकर पर फसलोत्पादन की अनुमति भी मिली थी, ताकि बी.टी. फसलों से कीटनाशकों के प्रयोग पर विराम लगेगा। मोनसेंटो अपनी विवरणिका में कुछ कीड़ों की तस्वीर प्रदर्शित कर यह प्रचारित करता है कि ’अब कपास में ये कीट दिखाई दें तो चिंता करने की कोई बात नहीं, आगे से आपको बी.टी. फसलों में कीट नाशकों के छिड़काव की जरूरत नहीं पडे़गी।’ मोनसेंटो ने अपने दावे में यहां तक बताया कि बी.टी. कपास में कीटनाशकों के छिड़काव से फसल की उत्पादकता में कमी आ जाती है। लेकिन प्रत्यक्ष के लिए प्रमाण की क्या आवश्यकता? पंजाब में फसल की तबाही से मोनसेंटो का कोरा झूठ स्पष्ट हो चुका है। बी.टी. कपास अपने अंदर कीटनाशक को उत्पन करने वाली ऐसी प्रजाति है जिसे, कीटों को नियंत्रण करने के मकसद से तैयार किया गया। ज्ञात हो कि अमेरिका में बी.टी कपास कीटनाशक उत्पाद की भांति ही पंजीकृत है।
परम्परागत एवं बी.टी कपास में अंतर
बी.टी. टाॅक्सिन प्रकृति में साॅयल बैक्ट्रियम परिवार बेसिलस थ्रुरिंजिसिस (बी.टी.) के द्वारा उत्पादित अणु हैं। किसान तथा बागवान भाई अपने खेतो में बेसिलस थ्रुरिंजिसिस को एक जैविक खाद के रूप में पिछले 50 वर्षों में डालते आ रहे हैं। वर्तमान में बेसिलस थ्रुरिंजिसिस का गुण सूत्र जैव-प्रौद्योगिकी के माध्यम से फसल के अंदर प्रवेश कराया गया है, ताकि इसका एक-एक कण विषाक्त हो सके। अब यहां यह समझना अत्यंत आवश्यक है कि प्रकृति में पाये जाने वाले बी.टी. तथा जैव प्रौद्योगिकी के माध्यम से शोधित फसलों वाला बी.टी. किसी भी तरह से एक समान नहीं हैं। मिट्टी में प्राकृतिक रूप से पाये जाने वाला मृदा जीवाणु बी.टी. विष प्रवृति का होता है और अक्रिय अवस्था में होता है। इसी कारण से यह गैर-लक्षित कीटों के लिए हानिप्रद नहीं होता। इसे कम्बल कीडे़ में पाये जाने वाले एक एंजाइम के माध्यम से विषैला बना दिया जाता है। बी.टी. पौध में एक बहुत ही सूक्ष्म जीन होता है, जिसे विषैला बनाने के लिए बहुत कम प्रसंस्करण की आवश्यकता होती है। इसी वजह से यह गैर-लक्षित कीटों के लिए उतना ही विषैला होता है जितना कि बाॅलवाॅर्म (कपास पर लगने वाला कीड़ा) के लिए। प्राकृतिक रूप से मिलने वाले बी.टी और जैव प्रौद्योगिकी के आधार पर संशोधित बी.टी (पौधों में जडे़ गए) में यही अंतर होता है। इसी वजह से बी.टी. कपास गैर-लक्षित कीटों पर भी प्रभाव डालता है।
यहां जैव-प्रौद्योगिकी के झूठे दावों से विज्ञान के शोध को ढक दिया जाता है और प्रचार को विज्ञान के स्थान पर प्रतिस्थापित किया जाता है।
फेल हो गई बी.टी
जैव-यांत्रिक बी.टी. को टिकाऊ कीटनाशक की रणनीति के तर्ज पर प्रस्तुत किया जा रहा है। लेकिन बी.टी. फसलें न तो प्रभावी हैं और ना ही पारस्थितिक रूप से टिकाऊ। कीट-नियंत्रण करने के बजाय बी.टी. फसलें कीटों को और विकराल बना रही हैं। इस बात का प्रत्यक्ष उदाहरण सफेद मक्खियां हैं, जिन्होंने 2015 में पंजाब में 80 प्रतिशत से अधिक बी.टी. फसल को चैपट कर दिया। जब से भारत में बी.टी. फसलों को खेती हेतु अनुमति मिली, तब से अब तक के इतिहास में कपास पर लगने वाले कीड़ों ने गैर-बी.टी. कपास को कभी नुकसान नहीं पहुंचाया।
राॅयल सोसाइटी ने अपने अध्ययन मेें पाया कि जैव-यांत्रिक प्रक्रिया से बी.टी. कपास बाॅलवार्म को गैर-लक्षित कीटों यथा एफिड आदि के प्रति अधिक ग्राही बना देता है। क्योंकि बी.टी. वाले पौध की प्रत्येक कोशा में बी.टी. विष अपना प्रदर्शन करता है। बी.टी. कपास टेरपेनाॅइड्स नामक पदार्थ की न्यूनतम मात्रा रखता है, जो कि दूसरे कीटों को आकर्षित करता है।
सचेत हो सरकार
मोनसेंटो न केवल एक असफल प्रौद्योगिकी को भारतीय खेतों में थोपने पर लगा हुआ है, बल्कि वह जबरन ही हमारे छोटे-किसानों से राॅयल्टी वसूल कर उन्हें कर्ज की गर्त में फंसाने का का कुचक्र रच रहा है। भारत के कई राज्यों मेें बीज पर राॅयल्टी के मामले दर्ज किए गये हैं। सरकार को चाहिए कि वह भ्रष्ट कम्पनियों को संरक्षण देने की बजाय किसान और कृषि को संरक्षण प्रदान करे। इन बड़ी बीज कम्पनियों द्वारा प्रौद्योगिक असफलता तथा राॅयल्टी वसूलने पर सरकार की पारदर्शिता नितांत आवश्यक है।
अधिक जानकारी के लिए सम्पर्क करें-
Dinesh Chandra Semwal
09897293685

dinesh777semwal@gmail.com

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